राहो पे रहने वाला ये मुसाफिर ‘गेरुलाल ‘है ..
सफर करते करते करते एक बार दूर दराज के पहाड़ो में जा कर रुक गया
एक छोटा सा गाँव था और उस गांव में टूटा -फूटा सा एक घर … जहाँ चार औरतों का एक अधूरा सा परिवार रहता था.…
अम्मा थी साठ से ऊपर की कुछ सठियाई हुई सी कुछ बहकी हुई अपने आप से ही बातें करती रहती थी और उसकी तीन बेटियाँ ‘निमकी’ ‘मिट्ठू ‘और ‘चिनकी’…
शादी किसी की नहीं हो पाई लोग कहते है माँ बाप के छींटे न पड़े होते तो तीनो ब्याही जाती…… देखने में भी तो आखिर अच्छी खासी है
बड़ी शादी की उम्र से गुज़र चुकी है …
और छोटी लड़को की तरह रास्तों में ठुड्डे मारती चलती है शादी की उम्र को बस पहुंची के अब पहुंची …..
और मंझली बेचारी गूंगी है गेरुलाल ने अक्सर उसको गुनगुनाते सुना है
बहने कहती है की वो गीत लिखा करती है…
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संजीव कुमार और शबाना आज़मी गुलज़ार साहेब की अनमोल कृति
नमकीन -(1982 ) के सेट
Author: Navbharat Himachal Times
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